भोगने से भागने तक
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-राजेश बैरागी-
आज मैंने महाभारत पात्र पितामह भीष्म के जीवन चरित्र पर विचार किया। शास्त्रों के अनुसार यह पृथ्वी जीवों का कर्म एवं भोग स्थल है। भीष्म इसी पृथ्वी के मानव योनि के जीव हैं। उनपर पिछले जन्मों के कर्म आधारित पापों का ऋण है।उसी ऋण के भुगतान के लिए उन्हें कठोर, कष्टप्रद किंतु दीर्घ आयु प्राप्त हुई। इच्छा मृत्यु का वरदान भी उनके लिए अभिशाप बन गया। अतः यह सिद्ध होता है कि मनुष्य और दूसरे जीव पूर्व जन्मों के कर्मों का भोग भोगने के लिए पृथ्वी पर आते हैं और इस जीवनकाल में किये गये कर्मों के अनुसार अगले जन्म की तैयारी करते हैं। भोगने से दो अर्थ हैं। एक कष्ट भोगना। दूसरा सुख भोगना। संसार के कर्म क्षेत्र से भागना संभव है? ऋषि, मुनि,संत, विरक्त,साधक ऐसे ही मनुष्य रूप जीव हैं। हालांकि वह भी एक प्रकार का कर्म क्षेत्र ही है। यह ऐसा ही है जैसे कोई अपराधी कारागार में अपने पाप का प्रायश्चित करने की अपेक्षा अज्ञातवास में रहकर अधिक कष्टों का वरण करे।चूंकि अपराध का दंड अवश्य भोगना पड़ता है, अतः अज्ञातवास का निर्णय करने वाले को भी लौट-लौटकर मृत्युलोक के कारागार में आना ही पड़ता है। भीष्म इन दोनों अवस्थाओं के मिश्रित स्वरूप हैं।वह सांसारिक भी हैं और विरक्त भी। उन्हें अनेकानेक कष्ट हैं। कष्ट की अग्नि पापों की मलिनता का नाश करती है। भीष्म उस अग्नि में प्रतिक्षण स्वयं को जलाकर शुद्ध करने का प्रतीक हैं। साधारण मनुष्य कारागार पाकर प्रसन्न हो जाता है, असाधारण मनुष्य कारा तोड़कर असीमित कारागार का निर्माण करता है। वहां अपराध के पाप से निश्चित मुक्ति हो जाती है।(नेक दृष्टि हिंदी साप्ताहिक नौएडा)
<no title>-राजेश बैरागी- आज मैंने महाभारत पात्र पितामह भीष्म के जीवन चरित्र पर विचार किया।