अवैध धंधों का खेल
पुलिस प्लान के अनुसार होती है शराब की तस्करी
तरया सुजान थाना क्षेत्र से होकर जाने वाली शराब की बिहार मे हो रही बरामदगी
अखिलानंद राव, ब्यूरो चीफ
कुशीनगर।
सम्पूर्ण सरकारी तंत्र शराब तस्करी रोकने के हथकण्डे अपना रहा है पर, सफलता अपेक्षित न होने का कारण कोई और नही पुलिस विभाग है। क्योंकि इसका संचालन पुलिस विभाग के कुछ लोगो के इशारे पर होने की चर्चा सरेआम है।
चार दशक से अधिक समय से पूर्वांचल शराब की तस्करी का हब बन गया है। इस बात की प्रमाणिकता कोई और नही पूर्वांचल के थानों के वो अमिट अभिलेख है जिनमे लगातार शराब बरामदगियां लिखा पढी में दर्ज है। ये बरामदगियां इतने बड़े पैमाने पर हुई है कि किसी अन्य प्रांत के लिए मिसाल बन गई है। सवाल इससे यह उठता है कि यदि इतने बड़े पैमाने पर शराब बरामदगियां हुई है तो शराब की तस्करी कितनी हुई होगी? सवाल यह भी उठता है कि जब इतनी गाड़ियां शराब की पकड़ी गई तो इस अवैध कार्य का मुख्य सरगना और संरक्षणदाता क्यो नही पकड़ा गया और आजतक उसका नाम प्रकाश में क्यों नही लाया गया? इसमे सरकार शासन की मंशा के अनुरूप माफियाओ का निर्धारण क्यों नहीं किया गया? सूत्रों के अनुसार इस खेल की योजना कोई और नही स्वय पुलिस बनाती है? तमाम अनुत्तरित प्रश्न आज लोगों में चर्चा का बिषय बना हुआ है। हर गली चौराहों पर आजकल सिर्फ शराब तस्करी की चर्चा है और इस चर्चा में पुलिस के अधिकारी और उनके अधिनस्थो के बारे में जो कहा जा रहा है उसे हूबहू लिखना गरिमा को ठेस पहुचता है। लोगो की शब्दावली बदल गई है। पुलिस के प्रति लोगों में जो विश्वास होना चाहिये। वह अब देखने और सुनने को बहुत कम मिलता है। पहले थानो पर सम्मानित लोगों को बुलाया जाता था और क्षेत्र की समस्याओं को पुछा जाता था। अब दलालों और तस्करों को थानों में बुलाया जाता है। सुत्रो पर भरोसा करे तो पता चल रहा है कि कुछ दिन पूर्व शराब तस्कर पुलिस को बिना मैनेज किये तस्करी करते थे। उसका एक कारण था कि शराब तस्करी इतने बड़े पैमाने पर नहीं होती थी और लोंगो में इसकी मांग भी नहीं थी लेकिन उस समय पुलिस अवैध शराब या स्प्रीट पकड़ती थी तो गम्भीर कार्रवाई भी होती थी। उदाहरण है तरयासुजान थाना क्षेत्र जहां कोईन्दी मे तत्कालिन पुलिस क्षेत्राधिकारी महेन्द्र चौहान ने मात्र छह ड्रम अल्कोहल पकड़े जाने पर गैंगेस्टर जैसी धाराये लगाकर जेल भेजा था। आज ट्रक का ट्रक पकड़ा जा रहा है लेकिन अभिलेखो में गिरोह, माफियांओं तक को चिन्हित नहीं किया गया आखिर क्यों? गल्ला, खाद की बन्द तस्करी ने प्रदेश के नामचीन थाना तरयासुजान की घटती आमदनी व आय के संसाधन बढाने के क्रम में शराब तस्करों से सांठगांठ कर इस धंधा को शुरू करने का कार्य किया क्योंकि यहा तैनाती के मानक को पूरा कर पाना काबिल से काबिल दरोगाओं के बूते की बात नही है। ये तो वो जिगर वाले मजबूत लोग होते है जो मानक पूराकर यहाँ का चार्ज प्राप्त करते है। ऐसा नही कि इस थाने पर सिर्फ मानक पूरा करने वाले ही दरोगा आये। एक दशक पूर्व एक से बढ़कर एक थानेदार आये जिन्होने जंगल पार्टी के दस्यु सरगनाओं का उन्मूलन किया तथा अपराधों पर अंकुश लगाने का कार्य किया। जिनका नाम सुनकर ही अपराधी कांप जाते थे, लेकिन बिहार में शराब बन्दी के बाद तमकुही पुलिस सर्किल के सीमावर्ती थाना क्षेत्रो में जिस तरह अवैध शराब का धंधा जोर पकड़ा है, उसमे कही न कही पुलिस विभाग की संलिप्तता से इंकार नहीं किया जा सकता है। तत्कालिन एसपी जमुना प्रसाद ने तो एक ऐसा टीम गठित किया था जो अवैध शराब पकड़ते थे और स्थानीय पुलिस को भनक भी नहीं लगता था। हमाम में सभी नंगे हैं,, वाली बात है नीचे से लेकर उ०प्र० तक इस सिस्टम के अंग हो जाते है, क्योंकि पहले जैसा यहा दस्यु दलो से लड़ने का कार्य नही हैं। यहा तो बालू खनन, सीमेंट, छड़, खाद, कोयला, मादक द्रव्य, विदेशी गुड्स, और सबसे बड़ा कार्य शराब तस्करी को रोकने का आता है। सूत्रों की माने तो यही कार्य पुलिस विभाग को मालामाल करती है। जिसके कारण यहां तैनाती असरदार माना जाता है।
सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि इस खेल में आबकारी बिभाग को सिर्फ अपने हक से मतलब है। तस्करी पूरे माह मे मात्र चार दिन ही होती है, क्योंकि इन चार दिनों में रात को जरिये कोड तस्करो को छूट रहती है कि आज की रात स्प्रीट भरी टैंकर, ड्राम तथा अग्रेंजी उतरवाना है तो उतरवा लो, फिर दोबारा जब सेटींग होगा तभी माल मंगवाना और इसबात का भी चेतावनी दिया जाता है कि यदि बीच में शराब आया तो वो पकड़ा जाएगा। तस्करों से ये बात भी सेटिंग हो जाती है कि वरामदगी के लिए भी कुछ शराब का प्रबंधन शराब मफियाओ को पुलिस के लिए करना है। जिसको बारामदगी दिखाकर पुलिस अपनी पीठ थप थपाती है। पूर्व में सोसल मीडिया पर वायरल हुई जानकारी पर गौर करे तो शराब माफिया बरामदगी के लिए स्पेशल शराब फैक्ट्री से शीशी में रंग भरकर मंगाते है और वही पुलिस बरामद दिखाती है। इस बात में कितनी सच्चाई है। ये तो तभी पता चलेगा, जब बरामद शराब की लेबोरेटरी जांच कराई जाए। बरामद शराब का स्टॉक और माल कितना बचा है, थानों में ये भी जांच का विषय है।
पूर्व उपजिलाधिकारी त्रिभुवन प्रसाद ने जिस तरह आते ही बड़े बड़े माफिययाओं में कोहराम मचा दिया, लेकिन माफियाओं ने तबादला करा अपने धंधे को बेरोकटोक जारी रखा है। पुलिस तस्करी पर पर्दा डालने के लिए दो चार शराब बरामदगियां कर वाह वाही लूटती है। माल भी उन्ही का पकड़ा जाता जो सेटिग में नही होते है, जिसकी मुखबीरी बड़े तस्कर करते है। वैसे तमकुही पुलिस सर्किल का सीमावर्ती क्षेत्र अवैध शराब का गढ़ बन गया है जिसका उदाहरण है पटहेरवा व तरयासुजान थाना क्षेत्र मे की गयी डिनेचर स्प्रिट और अग्रेंजी शराब की बरामदगी हैं।अब तस्करो ने सेवरही व विशुनपुरा में भी पाँव पसारना शुरु कर दिया है। तस्कर बेखौफ होकर हाइवे पर स्थित पटहेरवा थाना पार कर तरयासुजान थाना क्षेत्र होते हुए बिहार सीमा में प्रवेश कर जा रहे हैं, जिसका प्रमाण बिहार पुलिस शराब की बरामदगी दिखा तस्करी की पोल खोल रही हैं।