*मासूम बच्चों का स्कूल में पढ़ाई की बजाय दुकानों में घुट रहा है बचपन*
*देश का भविष्य कारखानों व दुकानों में*
*बाल दिवस पर ही याद आते है बच्चे*
*घर की जिम्मेदारियों में खो गया मासूमो का बचपन*
*इंसाफ की डगर जब पथरीली हो जाये,इंसाफ करने वाले जब पत्थर दिल हो जाएं तो देश का भविष्य खतरे में आ जाता है।देश के बेटे से देश के नेता बनने का सफर किसी बोझ से कम नही होता और जब ऐसे वक्त में नेता नगरी वाले लोग खुद को मंच तक और चमत्कारी भाषण तक सीमित रखते हो,सब कुछ बेईमानी हो जाता है,आजादी बेईमानी लगती है,आजादी की बातें बेईमानी लगती हैं,बेईमानी लगता है हर वर्ष मनाए जाने वाला बालदिवस के खिलाफ सड़कों पर उतरकर बच्चों के भविष्य को बंधुआ बनाने वालों के खिलाफ लोग आवाजें बुलंद करते हैं,वो धार एक दिन सिमट कर रह जाती है और पूरे वर्ष बच्चे किसी दुकान पर,किसी कारखाने पर अपने बचपन को खोकर जिंदगी का कडुआ घूट पीते है।दुनिया के जीवन मे रंग भरने के लिए बच्चों के सपने बेरंग हो गए हैं,मटमैली हो गयी वो तस्वीर जिसमे बच्चे देश का भविष्य दिखाए गए है,कतरा-कतरा हो चुके वो दस्तावेज जिसमे बच्चों को देश का भविष्य बताया गया है क्योकि हर साल लाल किले की प्राचीर से खड़े होकर जब भी शब्दों की कलम से एक सुनहरी तस्वीर खींची जाती है वो बाल दिवस तक आते-आते दम तोड़ देती है,सिसक जाती है और पूछ उठती है कि बताओ हुक्मरान किस गुस्ताखी की सजा है ये कि बचपना कोसा गया है इन तंग गलियों में दो जून की रोटी के लिए अपने बचपन का गला घोटना पड़ा है।सच्चाई के बल पर आगे बढ़ने से पहले कांधों का ये बोझ कदम रोक देता है लेकिन घर की जिम्मेदारियां इन नन्हे कल को सोने नही देतीं,उन्हें कल का नेता बनने का सपना संजोने नही देते।*
*आजादी के 73 साल बाद भी अगर देश का मासूम अपने परिवार का पेट पालने के लिए बचपने को मारने को मजबूर है तो सारे वादे मातम मनाओ,सारे वादे विलाप करो,सारे दावे सिसक जाओ क्योकि देश का कल कारखानों में एड़ियां घिस रहा है।ये कालपी का छोटू है असली नाम क्या है शायद इसको भी नही पता क्योकि जिस उम्र में अपने साथ के बच्चों को पढ़ते और भविष्य संवारते देखा होगा तो दूसरी नजर अपने परिवार पर भी पड़ती होगी और इसी जरूरत ने इसे मोटर गैराज तक पहुंचा दिया।लोगों ने काम के एवज में दाम तो दिए ही नाम भी दे दिया "छोटू"लेकिन सरकार की नजर में छोटू की मासूमियत रौंदी नही जा रही बल्कि वो"स्किल डेवलपमेंट" कोर्स कर रहा है जिससे आगे चलकर वो बड़ी मोटर कंपनी का मालिक बन सकता है तो क्या हुआ कि हिंदी वर्णमाला से लेकर अंग्रेजी के शब्दों का ज्ञान नही उसको,हांथों में हुनर है कांधों पर घर की जिम्मेदारी जिसे वो निभा रहा है क्योकि जिनके कांधों पर देश के भविष्य को सुधारने की जिम्मेदारी है वो इसे"स्किल डेवलपमेंट"कहते है।*
*घर की जिम्मेदारियों ने देश के कई छोटुओं को ऐसे सेमी प्राइवेट कोर्स करने को मजबूर कर दिया है।सरकारी अभिलेख में छोटू बड़ा हो चुका है,उसे रोजगार मिल चुका है,सारी योजनाएं यहीं दम तोड़ देती हैं,नेताओ की बातें कानों में दर्द करने लगती हैं जब मचान में खड़े होकर एक सुनहरे कल की बातें करते हैं,बेसहारों को सहारा देने की बात करते हैं मतलब कि अलग-अलग क्षेत्र में बचपन पर पचपन की मार मारने वालों के खिलाफ कार्यवाही की जाती है और उसके लिए अलग-अलग अफसर लोग तैनात हैं जिनपर हर महीने जिलेवार लाखों लुटा देती है सरकार लेकिन इसके बाद भी बचपन कैद है,चंद सिक्कों की खनक की खातिर,घर की जिम्मेदारियों के खातिर और हम इस गफलत में जी रहे है कि हम आजाद हैं।*
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*रिपोर्ट-शिवम गुप्ता*
*अंकित गुप्ता*
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