<no title>अमीरों की चिंता: मुफ्त में दाह-संस्कार

अमीरों की चिंता: मुफ्त में दाह-संस्कार
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-राजेश बैरागी-
जेब से अमीर कौन बन पाता है? सुनते हैं धन के लोभी तिरुपति से दस-बीस प्रतिशत पर सौदा तय करते हैं।उस तरफ बालाजी होते हैं या नहीं परंतु इधर बेहद गरीब सौदागरों? की पंक्ति टूटती नहीं है। इनमें से अनेक लोग सामाजिक सुरक्षा और दरियादिली का खिताब पाने की इच्छा में दान भी करते हैं। ऐसे दानियों से ही वो सब सामाजिक काम होते हैं जो सरकार की प्राथमिकता में दोयम दर्जे के होते हैं। परंतु गुरुवार को एक मित्र जो रिश्तेदार भी हैं,का फोन आया। नोएडा के एक गांव और आसपास के सेक्टरों में कई बहुमंजिली इमारतें उनकी हैं। किराए और पैसे के लेनदेन का मोटा काम है। हालचाल पूछा फिर बोले कि नोएडा का अंतिम निवास भी तुम देख रहे हो। मैंने हां कहा तो बोले कि मरने पर लकड़ी तो मुफ्त मिल जाएगी ना। उन्होंने बेशक यह मजाक में कहा परंतु मैं दो दिन से सदमे में हूं।काश उन्होंने कहा होता कि संकट की इस घड़ी में यदि कोई लावारिस शव आये तो मुझे बताना।काश उन्होंने कहा होता कि तुम्हारी संस्था (नोएडा लोक मंच) के माध्यम से मैं क्या कर सकता हूं। ऐसा करने के लिए शेर का नहीं मानव का दिल होना चाहिए। इसके लिए जेब का भारी होना आवश्यक नहीं। यह मुक्त हस्त की हसरत मात्र है। अभी भी बहुत से धनपशु संकट को नजरंदाज कर इत्मिनान से जुगाली करने में व्यस्त हैं।जेब से नहीं जी से नहीं निकल रहा है। ऐसे लोग अस्पतालों के कर्जदार हैं, इनके ऊपर वकील और कर विभागों की देनदारी है, इनके वंशज इनकी समस्या हैं परंतु राष्ट्रीय आपदा इनके लिए कोई मायने नहीं रखती। मुझे इनपर गुस्से से ज्यादा तरस आता है।(हिंिि)