बेचैन - चैन (कर्नल रविंदर सिंह) एक कविता

 


बेचैन - चैन (कर्नल रविंदर सिंह)


 


जिस को देखा, है खोया - खोया ,


कुछ जागा कुछ है सोया - सोया।


दिखने में खुश आते हैं नजर ,


पर भटक रहे हैं सब मगर।


 


     सबसे बड़ा बस यही है गम,


     क्यूँ मिला है मुझे उससे कम।


     किसी को नहीं मिलता किसी किताब से,


     यहाँ सबको मिलता है हिसाब से।


 


हम चाहें अंबानी जैसी दौलत,


अमिताभ जैसी शान और शौकत।


क्या हो जाएगी ज़िंदगी सुहानी,


अगर हो जाएँ सब अमिताभ –अंबानी।


   


     कोई सख्त है तो कोई  नरम है,


     अपनी अपनी सोच अपने अपने करम हैं।


     इस लिए तुझे तू लगता है नीचे,


     क्योंकि तू करता है दुनियाँ के पीछे।


 


बेचैन होके खुद को न तोड़,


कभी तो अपने रुख को तू मोड।


पाने खोने हसने रोने के ही किस्से,


यही आते हैं हम सब के हिस्से।


 


    अपने उपर कर यह मेहरबानी,


    रख अपने ख़यालों पे निगरानी।


    जैसा सोचेगा तू वैसा ही करेगा,


    करम तेरे कोई और न भरेगा।


 


हर करम का न ढूंढ तू फल,


हर सवाल का न ढूंढ तू हल।


मचल मत देख दुनिया के नजारे,


चैन से जी ले ऊपर वाले के सहारे