जानिए क्या है देशद्रोह कानून, क्या है सजा और अब तक किन पर चले मुकदमे



सार


देशद्रोह कानून का इतिहास और अब तक देश में हैं इससे जुड़े कितने मामले
महात्मा गांधी पर लगा था पहला देशद्रोह का केस 
सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक सरकार के काम की आलोचना करना देशद्रोह नहीं है 
अंग्रेजों का बनाया कानून सेडिशन लॉ यानी देशद्रोह 
क्या है धारा 124 A और कितनी हो सकती है सजा 
 

 

विस्तार


देशद्रोह भारतीय कानून में एक संगीन अपराध की श्रेणी में आता है। जब भी किसी पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज होता है तो आईपीसी की धारा 124 A के तहत उस पर केस दर्ज किया जाता है। किसी देश में सबसे बड़ा अपराध देशद्रोह का होता है। इसलिए यह जानना बहुत जरूरी है कि भारत में देशद्रोह कानून क्या है। आइए जानते हैं देशद्रोह क्या होता है, देश के कानून में किन बातों को देशद्रोह के अंतर्गत माना जाता है।

 



क्या है देशद्रोह का कानून



जानिए क्या है देशद्रोह
भारतीय कानून संहिता (आईपीसी) की धारा 124A में देशद्रोह की जो परिभाषा दी हुई है उसके मुताबिक, अगर कोई भी व्यक्ति देश विरोधी सामग्री लिखता या बोलता है या फिर ऐसी सामग्री का समर्थन करता है, उसका प्रचार करता है या फिर राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करता है, साथ ही संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश करता है, तो इस जुर्म में उसे आजीवन कारावास या तीन साल की सजा हो सकती है।

देशद्रोह के अंतर्गत,


  • बोले गए या लिखे गए शब्दों द्वारा विरोध।

  • संकेतों द्वारा सरकार का विरोध करता है।

  • दृश्यरूपण के माध्यम से विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घॄणा, अपमान करने का प्रयत्न करना।  


जानिए क्या है देशद्रोह कानून का इतिहास




आजादी से पहले:
देशद्रोह पर किसी भी तरह का कानून 1859 तक अस्तित्व में नहीं था। इसे ब्रिटिश सरकार द्वारा 1860 में बनाया गया और फिर 1870 में इसे आईपीसी में शामिल कर दिया गया। यह कानून आजादी से पहले का है, इस कानून का प्रयोग अंग्रेज उन भारतीयों के खिलाफ करते थे, जो उनकी बात मानने से इनकार कर देते थे सबसे पहले यह कानून 1870 में अस्तित्व में आया था। भारत में तब से लेकर अब तक कानूनों में कई संशोधन हुए हैं, लेकिन ये धारा अभी तक बनी हुई है।




आईपीसी की धारा 121 से लेकर 124 A तक





  • आईपीसी की धारा 121 से लेकर 124A तक की परिभाषाएं और दंडात्मक प्रावधान सम्मिलित हैं।

  • धारा 121, 122, और 123 देश के विरुद्ध युद्ध के संदर्भ में विवरण है।  

  • धारा 123 तथा 124 राज प्रतीक, राष्ट्रपति और राज्यपाल से सम्बंधित है।

  • आजादी से पहले राष्ट्रपति की जगह क्राउन व्यवस्था हुआ करती थी, जिसको बाद में संशोधित किया गया।





अंग्रेजों का बनाया कानून सेडिशन लॉ यानी देशद्रोह




धारा 124 A: अंग्रेजों का बनाया कानून सेडिशन लॉ यानी देशद्रोह

देश की आजादी से पूर्व धारा 124 A जिसे अंग्रेजी में सेडिशन कानून कहा जाता था, आजादी के बाद उसमें राज के स्थान पर सरकार शब्द हो गया। इस धारा का आईपीसी में जोड़ा जाना और आजादी के बाद भी इस धारा का बने रहना बहस का मुद्दा बना रहा है।




धारा 124 A को खत्म करने वालों का पक्ष क्या है?




जानकारों के तर्क के मुताबिक यह धारा 124 A संविधान में दी गई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का दमन करती है, उसके विपरीत है।
पहले ही देश विरोधी कृत्य के लिए संविधान की धारा 19 (1) ए की वजह से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगे हुए हैं ऐसे में धारा 124 का कोई औचित्य नहीं दिखता है। देश में शांति व्यवस्था बिगाड़ने के लिए प्रेरित करना, उकसाना, धार्मिक तनाव को फैलाने के लिए आईपीसी में पहले से ही अलग-अलग धाराओं में सजा का प्रावधान मौजूद है इसलिए इस धारा का कोई औचित्य नजर नहीं आता है।

सुप्रीम कोर्ट की इस कानून पर टिप्पणी

1962 में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कहा था कि नारेबाजी करना देशद्रोह के दायरे में नहीं आता है। वहीं कई ऐसे मामले हैं, जिनमें कोर्ट ने सरकार या प्रशासन के खिलाफ उठाई गई आवाज और शिकायत को राजद्रोह के अधीन नहीं माना है।
 
क्या था मामला
यह मामला सुर्खियों में तब आया जब बिहार के रहने वाले केदारनाथ सिंह पर वर्ष 1962 में राज्य सरकार ने एक भाषण के मामले में देशद्रोह का केस दर्ज किया था, जिस पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की एक बेंच ने केदारनाथ सिंह केस पर आदेश दिया था। इस आदेश में साफ कहा गया था,


देशद्रोही भाषणों और अभिव्यक्ति को सिर्फ तभी दंडित किया जा सकता है, जब उसकी वजह से किसी तरह की हिंसा हुई हो , असंतोष फैला हो या फिर सामाजिक असंतुष्टिकरण बढ़े।





जानिए देशद्रोह में क्या आता है




1837 का दौर था जब भारत अंग्रेजों ने देशद्रोह लागू कर दिया था, इसके पीछे का मकसद बेहद साफ था कि जो भी भारतीय उनके खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करेगा उनके खिलाफ प्रदर्शन करेगा वो उसको जेल में इस कानून के तहत डाल देंगे। इस कानून को थॉमस मैकॉले ने धारा 113 के तहत बनाया था।


  • आईपीसी की धारा 124 ए में देशद्रोह को परिभाषित किया गया है और इसकी इसकी सजा का प्रावधान धारा 124 ए में किया गया है।

  • सरकार के खिलाफ कुछ भड़काऊ बोलता या लिखता है जिससे दंगे और विद्रोह हो जाए देशद्रोह की श्रेणी में आता है।

  • अगर कोई व्यक्ति सरकार के खिलाफ बोलने वाले का साथ देता है तो वो भी देशद्रोही कहलाता है।

  • संविधान का अपमान और  विरोध करना भी देशद्रोह माना जाता है।

  • देश के प्रतीक चिन्ह और राष्ट्रीय चिन्ह का अपमान करना देशद्रोह है।

  • राष्ट्र के गुप्त बातों को दूसरे मुल्कों में लीक करना भी देशद्रोह है। 





देशद्रोह: जानिए अब तक देश में हैं कितने मामले




अगर एक नजर आंकड़ों पर डालें तो एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार देश में देशद्रोह के 47 मामले दर्ज किए जा चुके हैं जिसमें से 72 फीसदी मामले सिर्फ बिहार-झारखंड में दर्ज किये गए हैं।


  • झारखंड में 18

  • बिहार में 16

  • केरल में 5

  • उड़ीसा-पश्चिम बंगाल में 2-2 मामले दर्ज हैं।

  • आंध्र प्रदेश, असम, हिमाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ में एक-एक मामले दर्ज हो चुके हैं।


(2014 एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार )
पिछले कुछ सालों में आए मामले चर्चा में रहे जिनमें वीएचपी नेता प्रवीण तोगड़िया, कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी, पाटीदार नेता हार्दिक पटेल और जेएनयू प्रेसीडेंट कन्हैया कुमार को इसी देशद्रोह कानून के तहत गिरफ्तार किया गया था।



देशद्रोह: अब तक इन पर हुआ है लागू



  1. 1870 में बने इस कानून का सबसे पहले इस्तेमाल ब्रिटिश सरकार ने महात्मा गांधी के खिलाफ किया था। उस समय वीकली जनरल में 'यंग इंडिया' नाम से महात्मा गांधी के आर्टिकल लिखे जो ब्रिटिश सरकार के खिलाफ थे, इससे नाराज होकर ब्रिटिश सरकार ने उनपर देशद्रोह का मुकदमा कर दिया।

  2. वर्ष 1962 में बिहार के रहने वाले केदारनाथ सिंह पर राज्य सरकार ने एक भाषण के मामले में देशद्रोह का केस दर्ज किया था, जिस पर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी और अपने आदेश में कहा गया था, 'देशद्रोही भाषणों और अभिव्यक्ति को सिर्फ तभी दंडित किया जा सकता है, जब उसकी वजह से किसी तरह की हिंसा, असंतोष या फिर सामाजिक असंतुष्टिकरण बढ़े'।

  3. वर्ष 2010 को विनायक सेन पर नक्सल विचारधारा फैलाने का आरोप लगाते हुए उन पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था। इस मामले में बिनायक सेन के साथ नारायण सान्याल और कोलकाता के पीयूष गुहा को भी देशद्रोह का दोषी पाया गया था। इसके लिए इन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। 16 अप्रैल 2011 को बिनायक सेन को सुप्रीम कोर्ट की ओर से जमानत भी मिल गई थी। यह मामला बहुत चर्चित रहा था।

  4. वर्ष 2012 में काटूर्निस्ट असीम त्रिवेदी को संविधान को लेकर उनकी साइट पर भद्दी और गंदी तस्वीरें पोस्ट करने के कारण इस कानून के तहत गिरफ्तार किया गया था। 2011 में यह कार्टून उन्होंने मुंबई में भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे  एक आंदोलन के समय बनाई थी जिसके चलते उनका बहुत विरोध भी हुआ था। 

  5. वर्ष 2012 में तमिलनाडु सरकार ने कुडनकुलम परमाणु प्लांट का विरोध करने पर एक साथ 7 हजार ग्रामीणों पर देशद्रोह की धाराएं लगाईं थी।

  6. वर्ष 2015 में देशद्रोह का केस बहुत चर्चा में रहा क्योंकि गुजरात में हार्दिक पटेल को गुजरात पुलिस की ओर से देशद्रोह के मामले तहत गिरफ्तार किया गया था क्योंकि वह पाटीदारों के लिए आरक्षण की मांग कर रहे थे।  

  7. वर्ष 2016 में जेएनयू के छात्र कन्हैया कुमार को देश विरोधी नारें लगाते पर गिरफ्तार कर लिया गया था, देशद्रोह कानून के तहत उसकी गिरफ्तारी हुई थी मगर बाद में अपराध सिद्ध ना होने के कारण उन्हें जमानत दे दी गई थी।   


Bibliography and Reference 


  • कानून विशेषज्ञों की राय 

  • आईपीसी की  धारा 124 A, धारा 121,धारा 122,धारा 123 और धारा 124 ( व्याख्या और परिभाषाएं) 

  • 2014 की एनसीआरबी के आंकड़ों का आधार